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इस दिन रखा जाएगा वरुथिनी एकादशी का व्रत, जानिए भगवान विष्णु का कैसे करें पूजन

gmedianews24( source) : हिन्दू धर्म ग्रंथों और पुराणों में भगवान विष्णु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. श्री हरि यानि विष्णु भगवान त्रिदेवों में एक माने जाते हैं और उनकी विधिवत पूरा करने से पुण्य की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु के पूजन के लिए एकादशी की तिथि को श्रेष्ठ माना गया है. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के पूजन का विशेष महत्व है. इस एकादशी को वरुथिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. कई लोग इस तिथि को वैशाख एकादशी भी कहते हैं. वैशाख एकादशी के दिन पूरे विधि-विधान से विष्णु देव की पूजा करने और उपवास करने से मन को शांति मिलती है और नकारात्मकता का नाश होता है, ऐसी मान्यता है. इस वर्ष यह एकादशी 4 मई को पड़ रही है. आइए जानते हैं कि वरुथिनी एकादशी का महत्व और इस दिन किस प्रकार से श्री हरि की पूजा करनी चाहिए. साथ ही यह भी जानते हैं कि विष्णुदेव को इस दिन किस प्रकार का भोग-प्रसाद अर्पण करना चाहिए, ताकि उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सके.

किस समय है पूजा का मूहुर्त 

जिस भक्त पर नारायण की कृपा हो उसे संसार की अन्य वस्तु की आवश्यता ही नहीं होती, ऐसा माना जाता है. नारायण को प्रसन्न करने के लिए वरुथिनी एकदशी का दिन श्रेष्ठ है. वरुविथी का अर्थ सुरक्षा होता है यानी इस दिन जो उचित रूप से नारायण का पूजन करेगा उसे स्वयं नारायण की कृपा और सुरक्षा प्राप्त होती है. एकादशी की तिथि तो 3 मई को रात्रि 11.24 से आरंभ हो जाएगी. जबकि अगले दिन यानि 4 मई को रात को 8.38 को इस तिथि का समापन होगा. ऐसे में व्रत-उपवास रखने के लिए 4 मई श्रेष्ठ रहेगी. उपवास रखकर नारायण का पूजन करने वाले भक्तों के लिए पूजा का मुहूर्त सुबह 7.18 से 8 बजकर 58 मिनट तक रहेगा. इस दौरान पूजा करने से अच्छे पुण्य-लाभ की प्राप्ति होगी.

कैसे हो पूजन और किसका लगाएं भोग

इस व्रत को रखने वाले सभी श्रद्धालु सुबह स्नान आदि से निवृत होकर पूजन के मुहूर्त पर सच्चे श्रद्धाभाव से श्रीहरि का पूजन करें. ध्यान रहे कि भगवान विष्णु को तुलसी पत्र काफी प्रिय होता है. ऐसे में अपने आराध्य देव को तुलसी पत्र अवश्य अर्पण करें. तुलसी के पत्ते के अभाव में यह पूजा अधूरी ही मानी जाती है. इसके अलावा पंचामृत का भोग भी नारायण को अतिप्रिय होता है. इसका भोग (Bhog) लगाने से भी श्री हरि प्रसन्न होते हैं, ऐसी मान्यता है. पूजन के दौरान विष्णु जी की आरती और श्री हरि के मंत्रों का जप करें. पूजा के बाद सभी परिजनों और इष्ट मित्रों को प्रसाद का बातें. व्रत का पारण अगले दिन यानी 5 मई को करें. पारण के लिए सुबह 5.37 से 8.17 के बीच का समय श्रेष्ठ रहेगा.

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